Tuesday, August 18, 2015

समुचित / उपयुक्त / यथार्थ

समुचित / उपयुक्त / यथार्थ - शब्दो का प्रयोग करते हुए भाव 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
'समुचित' कारण मिल जायेंगे एवं 'उपयुक्त' समय होगा जब 
नियति के हाथो ही 'प्रतिबिम्ब'', 'यथार्थ' से मिलना होगा तब


Anju Garg 
समेट कर 'समुचित' व्यथाएं गरीब का घर 'उपयुक्त' बनाया 
उस पर जन्म देकर कन्या का जीवन में 'यथार्थ' से मिलवाया


Kiran Srivastava 
न हो पलायन शहर मेँ
गाँव का हो 'समुचित' विकास 
साधन हो उपलब्ध सब यहाँ
सदा रहे यही प्रयास
यही है 'उपयुक्त' समय
'यथार्थ' से परिचित होने का
गाँव बचे तो देश बचेगा
ये अभिन्न अँग है भारत का......!!!!
"जय किसान"
"जय भारत"

मीनाक्षी कपूर मीनू 
१. 
'समुचित' जीवन भी कम होगा 
गर तुम न मिल पाए हमें 
'उपयुक्त' न जाने 
वो कौन सा समय होगा 
जब गले लगा 'यथार्थ' को.
मिलना होगा, रोना - हंसना होगा
२.
समर्पण होगा मन में
पा जाओगे समुचित ज्ञान
उपयुक्त समय हो जब,
तब मनस्वी ...
बढ़ाओ तुम भारत की
शान ...
यथार्थ की धरा की
अब तू पहचान कर
मनस्वी बढ़ा ले हाथ अब
इंसानियत से करअपनी पहचान .



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Tuesday, July 21, 2015

शब्द - प्रयायवाची शब्द - विलोम शब्द

प्रतियोगिता 
१. 'तीन' शब्द स्वयं लिखिए और उनका प्रयोग करते हुए चार पंक्तियाँ लिखिए. 
२. वे 'तीन' शब्द कैसे हो ....दूसरा शब्द पहले शब्द का प्रयायवाची होना चाहिए और तीसरा शब्द विलोम होना चाहिए. 
उदहारण : पानी, जल, थल /नभ

Shyam Sundar Matia 
मनुष्य - इंसान  - दानव
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आज का मनुष्य
इन्सान न हो कर 
दानव बन कर रह गया है 
देवता से बहुत परे

Kiran Srivastava 
रात - रात्रि - सुबह
--------------

तय है आना...!
रात्रि के बाद सुबह
सुबह के बाद रात्रि
ये रात और दिन
यूँ ही आते -जातें हैं
जैसे हो यायावर....!!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
निकट - समीप - दूर
-------------

जितना 'निकट' भी पहुँच जाऊं
सपने उतने ही 'दूर' नज़र आते है
मंजिल 'समीप' मरीचिका सी ;प्रतिबिंब'
मेरी आस बस प्यासी रह जाती है


प्रभा मित्तल
सौम्यता - स्निग्धता - उग्रता
~~~~

'सौम्यता' जीत लेती है मन को
'उग्रता' जीवन भर दण्डित करती।
'स्निग्धता' रखो अपने स्वभाव में, 
जग में यह सबको हर्षित करती।


कुसुम शर्मा 
गगन - अम्बर - अवनी 
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मै गगन को छूना चाहती हूँ 
अवनी से अम्बर तक 
एक घर बनाना चाहती हूँ 
हो जिसमे बस प्यार का बसेरा 
ऐसा संसार बनाना चाहती हूँ !!


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Wednesday, July 8, 2015

ठठोली - ठाँव - ठीकरा



ठठोली 

ठाँव [ ठिकाना / स्थान ] 
ठीकरा [ मिट्टी का वर्तन / भिक्षा पात्र और निरथर्क /व्यर्थ समझना ]


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
'ठीकरा' समझने की भूल न करना कोई हंसी 'ठठोली' में भी 
बना लिया 'ठाँव' मैंने 'प्रतिबिम्ब', इस अजनबी शहर में भी


नैनी ग्रोवर 

'ठीकरा' सा है ये जीवन, 'ठाँव' कहाँ ढूँढे है, 
'ठठोली' करती है किस्मत, नितदिन हमसे..!! नैनी


DrShyam Sundar Matia 
KANHA, RADHA SE THTHOLI KA THIKRA , 
MAHARE THANV NA FODO //


कुसुम शर्मा 
ये तन है 'ठीकरा' 
मत कर क़िस्मत तु 'ठठोली' 
'ठाँव' है कहाँ ये मालूम नही !!


Kiran Srivastava 
मत कर 'ठठोली' ऐ जिंदगी
नहीं है तेरा कोई 'ठाँव'-ठिकाना....!!
जैसे आया है,वैसे जायेगा,
'ठीकरा' सा टूट कर बिखर जायेगा....!!!!


प्रभा मित्तल 
"ठीकरा"लिए हाथ में एक स्त्री
कब से गंगा किनारे बैठी है
बरस बीत गए कितने ही,
जाड़ा गर्मी बरसात या
हो बेमौसम की मार
सिर पर सब सहती है
न "ठाँव" है न छाँव है
बच्चे-बड़े छेड़कर हँसते हैं
पर किसी से कुछ नहीं कहती
बेज़ुबान सी चुप रहती है
जो भिक्षा में मिल जाए
खाकर भूख मिटा लेती है।

एक दिन मैंने पूछ ही लिया
माँ जी घर क्यों नहीं जाती हो ?
कातर सी मुश्किल से वो बोली-
बीमार हूँ संक्रमण के डर से
बेटे ने घर से निकाल दिया है
बदनामी के डर से बाहर 
कुछ भी कहने से मना किया है
कसूर उसका नहीं है, बेटी !
मेरे ही भाग्य की है ये "ठठोली"।

मैं निःशब्द निस्तब्ध सी खड़ी
उसके इस कथन पर हैरान थी
जो माँ बीमारी में बच्चे को
अपनी छाती पर सुलाती है
बुढ़ापे में बीमार वही माँ
अछूत कैसे बन जाती है....।

अलका गुप्ता 
फोड़ 'ठीकरा' इस 'ठाँव' 'ठठोली' का |
बैठीं मिल चारि सखी हम-जोली का |
रैन गई..बैन गई.. मरि चैन गई...
चारि घरा फोड़ि आईं बढ़ि-बोली का ||

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Thursday, July 2, 2015

रिपुवाह, रंजिश. रणांगण

रिपुवाह,  रंजिश.  रणांगण  -  शब्दों का प्रयोग करते हुए भाव

  • प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .....
    रंजिश निभाने को वक्त बहुत है, रणांगण जब चाहे सजा लो 
    छोड़ कर पाप 'प्रतिबिंब', कर नाश पाप का रिपुवाह कहलाओ

  • Kiran Srivastava रणांगण हो मेरा अपना
    सुख-समृद्धि से सजा हुआ,
    ना हो कोई रोगी

    ना हो कोई दुःखी,
    ना हो कोई रंजिश
    ना हो कोई दविश,!
    एक दुसरे से हम
    इतना करें प्रेम
    ना हो कोई हमारा रिपु
    ना कोई रिपुवाह....!!!

  • अलका गुप्ता ~~~~~~~~~~~~~
    रणांगण भए रणित घोर रणसिंघा |
    झौंझियाएं रिपुवाह तड़ित मेघा |

    शोणित तेगा बाजि रहे ललुकार ..
    रंजित रंजिश लहु-लुहान तनु जंघा ||

  • कुसुम शर्मा जब प्रेम किया उनसे तो रंजिश कैसी 
    वो लाख करे सितम फिर भी रंणागण कैसा 
    प्रेम से मिटायेंगे रिपु 

    तो फिर रिपुवाह कैसा !!



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Friday, June 19, 2015

रेखाकिंत - संघर्ष - शंकित





  • प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ......
    'रेखाकिंत' है अगर नियति, 'संघर्ष' की राह मुमकिन है
    'शंकित' न हो 'प्रतिबिम्ब', कर्म की राह होती फलित है




  •  रेखांकित है हाथो की रेखा 
  • जाने इन मे कितना संघर्ष छुपा 
  • शंकित नही की वह पार न कर पाये 
  • ये तो है हमारे कर्मों से बँधा !

  • अलका गुप्ता ~~~~~~~~~~~
    न ठहरें कभी उस मंजिल ठिए आदम |
    रेखांकित ..राह में ...बढते रहें कदम | 

    होना क्यूँ आत्मबल पर शंकित कभी ..
    छोड़ ना देवें.. हरगिज संघर्ष का दम ||


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Monday, June 1, 2015

विज्ञान /प्रकृति से सम्बन्धित ३ शब्द


मित्रो आज आप ३ ऐसे शब्द चुनिए अपने लिए जिनका सीधा संबंध विज्ञान /प्रकृति से हो, साथ ही भाव लिखिए और उन शब्दों को सम्मिलित कीजिये




    • रिश्तो में 'भौतिक' रूप से जुड़ना जरुरी है, जिसमे 'रसायन' प्रेम का होना जरुरी है

      प्रकृति का आधार भी तो प्रेम है 'प्रतिबिम्ब', जिसमे पर्यावरण का सरंक्ष्ण जरुरी है

    • कुसुम शर्मा आकाश, जमी ,नीर
      न बरसता आकाश से नीर 
      तो जमी प्यासी की प्यासी रह जाती 

      बरसा जो नीर तो लगा कि उसकी प्यास बुझी ........

    • प्रभा मित्तल संगणक,अंतरजाल,दूरभाष।
      ---------------------------
      'संगणक' जब से आया है 

      कागज़ - कलम छूट गया
      किताबों से मन रूठ गया
      'अंतरजाल' और 'दूरभाष' ही 
      बन गये हैं जीवन का आधार
      इस मशीनीकरण के युग में अब लगता है
      विज्ञान बिना मानव जीवन हो जैसे निस्सार।

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Thursday, May 7, 2015

क्षपित, त्रुटि, विकीर्ण



मित्रो पिछली पोस्ट पर पहले ३ निम्नलिखित शब्द मिले, अब इन पर आप अपने भाव लिखिए 
क्षपित
त्रुटि 
विकीर्ण


******************
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
'त्रुटि' न जाने हमसे कहाँ हुई, भाव जो यूं 'क्षपित' हुए
'विकीर्ण' सा अंतर्मन 'प्रतिबिंब', मन में एक भय लिए

नैनी ग्रोवर 
क्षपित हुई जब जब नारी, विकीर्ण तब तब पाप हुआ, 
ऐसी भी क्या त्रुटि हुई प्रभु, 
क्यों ना मानव को संताप हुआ ...!!

अलका गुप्ता 
कुछ तो त्रुटि-मय आव्हान हुए | 
प्रलोभन मय.....संवाहन हुए | 
क्षपित हुए रूप प्रतिरूप सभी...
विकीर्ण आश किरण से भान हुए || 

विभिन्न संदर्भो में बोए गए |
बीज निरंतर निद्रा मय सोए | 
भानु पवन जल स्पर्शों ने... 
अंकुरण अकुलाहट उपजाए ||

अंतर्मन पोषित आग़ाज हुए |
शीश उठा..गहन मंतव्य..गहे |
ललकार लहे भीषण संवाद बहे 
तरु ताड़ ..शज़र विकराल भए ||


प्रभा मित्तल 
भोला था बचपन भूल गया मन
उसके मानसरोवर में कितनी इच्छाएँ
पलती थीं कितनी हुईं पूरी कुछ अधूरी
'क्षपित' शापित सी तड़पती थीं।
ना जाने किस 'त्रुटि' की सजा मिली
जीवन के इस 'विकीर्ण' मरुस्थल में
गति हीन हो रुकूँ नहीं ,बढ़ती जाऊँ
इसी चाह में राह के कंटक चुनती थी। 

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